मैं तो हूँ शाएर की रूह
शाएर की खासिय्यत
एक ख़ुशबू इक तिलिस्म
और मिरा बेटा कि है शाएर का जिस्म
शाइरों की ख़सलतों का आइना
कज-रवी का इश्तिहार
है समेटे अपने अंदर ऐब की हर एक क़िस्म
ना-समझ आवारा-ओ-बेकार शैदा-ए-क़िमार
आश्नाओं का मुसाहिब कम-अयार
हर्ज़ा-गो बादा-गुसार
काश मैं होता शराबी और कबाबी और वो नेको-शिआर
बा-सफ़ा बे-ऐब सा मेरी तरह
लोग फिर मुझ को समझते शाएर-ए-रंगीं-ख़याल-ओ-बा-कमाल
और मिरा बेटा भी होता ख़ुश-ख़िसाल
दिल न होता पुर-मलाल
नज़्म
कज-रवी का इश्तिहार
कृष्ण मोहन