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कज-रवी का इश्तिहार | शाही शायरी
kaj-rawi ka ishtihaar

नज़्म

कज-रवी का इश्तिहार

कृष्ण मोहन

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मैं तो हूँ शाएर की रूह
शाएर की खासिय्यत

एक ख़ुशबू इक तिलिस्म
और मिरा बेटा कि है शाएर का जिस्म

शाइरों की ख़सलतों का आइना
कज-रवी का इश्तिहार

है समेटे अपने अंदर ऐब की हर एक क़िस्म
ना-समझ आवारा-ओ-बेकार शैदा-ए-क़िमार

आश्नाओं का मुसाहिब कम-अयार
हर्ज़ा-गो बादा-गुसार

काश मैं होता शराबी और कबाबी और वो नेको-शिआर
बा-सफ़ा बे-ऐब सा मेरी तरह

लोग फिर मुझ को समझते शाएर-ए-रंगीं-ख़याल-ओ-बा-कमाल
और मिरा बेटा भी होता ख़ुश-ख़िसाल

दिल न होता पुर-मलाल