हवा किस क़दर तेज़ है
अजनबी शाम सँवला गई
वक़्त दोनों गले मिल चुके
सर पे रक्खो रिदा
सुन रही हो
मसाजिद से उठती हुई
रूह-परवर-सदा
उठ के देखो तो
आँगन का दर बंद है
या खुला
लेकिन इस वक़्त तन्हा
खुले सर
कहाँ जा रही हो
नज़्म
कहाँ जा रही हो?
परवीन फ़ना सय्यद