वो जिस की आँखों में रत-जगों की बसीरतें हैं
वो मिशअल-ए-जाँ से दश्त की ज़ुल्मतों में
रस्ते बना रहा है
वो जिस के तन में हज़ारों मेख़ें गड़ी हुई हैं
कहाँ है शोरीदा-सर मुसाफ़िर
कि आज ख़ल्क़ उस को ढूँडती है
नज़्म
कहाँ है शोरीदा-सर मुसाफ़िर
परवीन फ़ना सय्यद