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कच्चे रंगों का मौसम | शाही शायरी
kachche rangon ka mausam

नज़्म

कच्चे रंगों का मौसम

शकील आज़मी

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घर से बस्ता और टिफ़िन के साथ निकलना मकतब को
आधे ही रस्ते से घूम के वापस आना

शाम ढले तक
खेलना कूदना

झगड़े करना
फिर मिल जाना

बाग़ से जा कर आम चुराना
पकड़े जाना

घर पर आ कर डाँटें सुनना
कभी कभी थप्पड़ भी खाना

गन्ने के मुरझाए और काले फूलों से
नक़ली दाढ़ी मूंछ बनाना

छुप कर जूठी बीड़ी पीना
खेतों में झाड़े को जाना

इधर उधर की बातें करना
इक गोरे लड़के के पीछे तकते रहना

कम-उम्री में बालिग़ होना
उल्टे सीधे ध्यान में शब भर

जागते रहना
कितना अच्छा लगता था

वो रातें कितनी प्यारी थीं
वो दिन कितने अलबेले थे