रात को
आँख खुल जाती है
तो सोचता हूँ
सब बराबर है?!
मैं और मेरा घर
बीवी बच्चे लॉकर
कोई चीज़
इधर उधर तो नहीं हुई!
और फिर
देर तक
इस बात का
अफ़्सोस करता हूँ
कि मैं
कितना बिखर गया हूँ!!
नज़्म
कभी कभी
मोहम्मद अल्वी
नज़्म
मोहम्मद अल्वी
रात को
आँख खुल जाती है
तो सोचता हूँ
सब बराबर है?!
मैं और मेरा घर
बीवी बच्चे लॉकर
कोई चीज़
इधर उधर तो नहीं हुई!
और फिर
देर तक
इस बात का
अफ़्सोस करता हूँ
कि मैं
कितना बिखर गया हूँ!!