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काश वह रोज़-ए-हश्र भी आए | शाही शायरी
kash wo roz-e-hashr bhi aae

नज़्म

काश वह रोज़-ए-हश्र भी आए

नीलमा सरवर

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तू मेरे हमराह खड़ा हो
सारी दुनिया पत्थर ले कर

जब मुझ को संगसार करे
तो अपनी बाँहों में छुपा कर

फिर भी मुझ से प्यार करे