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काश वक़्त थम जाता | शाही शायरी
kash waqt tham jata

नज़्म

काश वक़्त थम जाता

आदित्य पंत 'नाक़िद'

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किताब-ए-हयात का ये पन्ना
अच्छा होता जो बरक़रार रहता

वक़्त की तेज़ रफ़्तार पर
काश मेरा भी इख़्तियार रहता

एक दिलकश सफ़ीना बन कर
गुज़रे वक़्त का लम्हा लम्हा

आँखों की गहरी झील में
खाए हचकोले रफ़्ता रफ़्ता

ये सफ़ीना साहिल पा भी लेता
गर हाथ में पतवार रहता

यूँ तो एक लम्बे अर्से तक
साथ रहे हम एक जगह

लेकिन जैसे ही मिले क्यूँ
जुदाई का लम्हा आ गया

क़ाफ़िला वक़्त का यहीं थम जाए
है बस यही इंतिज़ार रहता