Search...
jinhen main DhunDhta tha aasmanon mein zaminon mein wo nikle mere zulmat-KHana-e-dil ke makinon mein
नज़्म
आसिफ़ रज़ा
उतरा था मोहब्बत से बातिन के अंधेरे में तुम ही ने मगर उस को न दोस्त कभी जाना रौशन न कभी माना अब ठोकरें खाते हो बातिन के अंधेरे में और ढूँडते फिरते हो रिफ़अत पे मगर बहता ज़ुल्मात का धारा है मादूम वो तारा है ये जुर्म तुम्हारा है