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जिस्म का निज़ाम | शाही शायरी
jism ka nizam

नज़्म

जिस्म का निज़ाम

अहमद हमेश

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जिस्म की भी एक जम्हूरियत है
जो हर कस-ओ-ना-कस में बे-नाम तक़्सीम हो के

आदमी को बे-असर कर देती है
जिस्म की भी एक आमरिय्यत होती है

जो किसी एक में जल बुझ के
सब के लिए राख बन जाती है