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झूट सच | शाही शायरी
jhuT sach

नज़्म

झूट सच

राशिद आज़र

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अगर ये सच है
तो लोग क्या सिर्फ़ एक ही सच को मानते हैं

ये सच अगर ज़ाविया नहीं है निगाह का तो बताओ क्या है
कि मैं खड़ा हूँ जहाँ वहाँ से

तुम्हारे चेहरे का एक ही रुख़
अयाँ है

जैसे
तुम आधे चेहरे के आदमी हो

अगर ये सच है
तो फिर बताओ कि झूट क्या है