झूट के पाँव नहीं होते
सिर्फ़
पाँव ही नहीं
कोई भी उज़्व नहीं होता
सिवाए ज़बान के
जो बड़ी ढिटाई
बे-शर्मी और बे-हयाई से
चलती है
ऐवान-ए-बाला के अंदर और बाहर
मंचों में
या टीवी के मुज़ाकरों
अख़बार की सुर्ख़ियों और
इंटरव्यूओं में
ताकि मासूम
अम्न-पसंद
सादा-लौह इंसानों को
वर्ग़ला कर
हलाकत में डाल दिया जाए!
नज़्म
झूट के पाँव
यूसुफ़ तक़ी