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झूट के पाँव | शाही शायरी
jhuT ke panw

नज़्म

झूट के पाँव

यूसुफ़ तक़ी

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झूट के पाँव नहीं होते
सिर्फ़

पाँव ही नहीं
कोई भी उज़्व नहीं होता

सिवाए ज़बान के
जो बड़ी ढिटाई

बे-शर्मी और बे-हयाई से
चलती है

ऐवान-ए-बाला के अंदर और बाहर
मंचों में

या टीवी के मुज़ाकरों
अख़बार की सुर्ख़ियों और

इंटरव्यूओं में
ताकि मासूम

अम्न-पसंद
सादा-लौह इंसानों को

वर्ग़ला कर
हलाकत में डाल दिया जाए!