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जवाँ-मर्ग का नौहा | शाही शायरी
jawan-marg ka nauha

नज़्म

जवाँ-मर्ग का नौहा

राहत नसीम मलिक

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हमें जवानी में मौत आएगी
भीगते तकिए के सर्द सीने पे

अपनी साँसों में गर्म बाँहों की प्यास ले कर सुलगने वाली
हर एक दोशीज़ा जानती है

कि आँख जब ख़्वाब के सहीफ़े को चाट ले गी
तो नूह कैप्सूल से पुकारेगा

प्यारे बेटे, अमाँ में आओ
लो, मैं ने जो क़ब्र उम्र के बेलचे से अपने लिए बनाई है

उस की रानों में
तुम भी अपना बदन समेटो

तुम्हारे एक हाथ चाँद और दूसरे पे सूरज
कि मस्लहत की क्रेज़ क़ाएम रहे

ग्लैमर तुम्हारे कॉलर में फूल बन कर खिले
ऐ बेटे, ये शहर उर्यानियों में नुचड़ेगा

और इस पर अज़ाब दाइम है