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जवाब | शाही शायरी
jawab

नज़्म

जवाब

हिमायत अली शाएर

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सूरज ने जाते जाते बड़ी तमकनत के साथ
ज़ुल्मत में डूबती हुई दुनिया पे की नज़र

कहने लगा कि कौन है अब उस का पासबाँ
मेरे सिवा है कौन ज़माने का राहबर

मैं था तो अपनी राह पे थी गामज़न हयात
अब मैं नहीं रहूँगा तो ये सारी काएनात

ज़ुल्मात में भटकती फिरेगी तमाम रात
सूरज ये कह के जा ही रहा था कि इक दिया

चुपके से जल उठा और उसे देखने लगा