राय की आज़ादी
मेरी बाँसुरी का सुर है
जिसे मेरी साँसों से निकाल कर ग़ुबारों में भर दिया गया है
मेरे फूल की ख़ुश्बू को
गंडेरियों की रेढ़ी पर रख कर फ़रोख़्त किया जाता है
मेरी भूक को मेरा भाई आधी रोटी के साथ चुरा लेता है
हर साल मेरे चराग़ की लौ इन्कम टेक्स के साथ काट ली जाती है
और
हर ईद को
मेरे ख़ाली हाथों पर एडवांस तनख़्वाह की ज़कात रक्खी जाती है
वक़्फ़े वक़्फ़े से
मेरी टोपी
चौपाल के बड़े दरख़्त पर लटका दी जाती है
नज़्म
जम्हूरियत
ज़ाहिद मसूद