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जैसे मधुबन की बाला | शाही शायरी
jaise madhuban ki baala

नज़्म

जैसे मधुबन की बाला

अबु बक्र अब्बाद

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चेहरा उस का सुर्ख़ गुलाब
होंट भरे याक़ूत से हैं

झील सी गहरी काली आँखें
चाँद जबीं पे रहता है

ज़ुल्फ़ों में अम्बर की ख़ुश्बू
ताज-महल सा उस का जिस्म

ग़ुंचों से भरी डाली की तरह वो
लहराती बल खाती है

बे-ख़ौफ़ी बे-फ़िक्री में
मस्त मगन सी रहती है

जैसे मधुबन की बाला
जैसे हसीना गाँव की

जैसी 'हसरत' की महबूबा
जैसी प्यारी शाह-'क़ुतुब' की

जैसे ग़ज़ल वो 'मीर' की हो
हाँ वो बिल्कुल ऐसी ही है

हाँ वो मेरी माशूक़ा है
मेरी ही माशूक़ा है वो