जहाँ तुम ये नज़्म ख़त्म करोगी
वहाँ एक दरख़्त उग आएगा
शिकार की एक मुहिम में
तुम उस के पीछे एक दरिंदे को हलाक करोगी
कशती-रानी के दिन
उस से अपनी कश्ती बाँध सकोगी
एक इनआम-याफ़ता तस्वीर में
तुम उस के सामने खड़ी नज़र आओगी
फिर तुम उसे
बहुत से दरख़्तों में गुम कर दोगी
और उस का नाम भूल जाओगी
और ये नज़्म
नज़्म
जहाँ तुम ये नज़्म ख़त्म करोगी
अफ़ज़ाल अहमद सय्यद