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जब तुम ने मुझे | शाही शायरी
jab tumne mujhe

नज़्म

जब तुम ने मुझे

शबनम अशाई

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अपने अहाते से खदेड़ा था
मेरे साथ

ख़ुदा भी बे-घर हो गया था
तुम

मेरी आँखों से दरमाँदा ख़्वाब
हटा सकते थे

या फिर
मेरे मन के आँसू

पोंछ सकते थे
मैं यूँ

कश्कोल लिए
इस शहर में

अपनाइयतें न माँगती
जहाँ भगवान भी

भीक में
पैसे माँगता है

सड़कों पे