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जब मैं अपने अंदर झाँक रहा था | शाही शायरी
jab main apne andar jhank raha tha

नज़्म

जब मैं अपने अंदर झाँक रहा था

मुसहफ़ इक़बाल तौसिफ़ी

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जब मैं अपने अंदर झाँक रहा था
एक कुआँ था

डोल मैं उस में डाल रहा था
इक रस्सी साँसों की

मेरे अश्कों में भीगी
ऊपर नीचे आती जाती

मैं उस को बाहर
वो मुझ को अंदर खींच रहा था!