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जब जंगल बस्ती में आया | शाही शायरी
jab jangal basti mein aaya

नज़्म

जब जंगल बस्ती में आया

फ़ज़्ल ताबिश

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मेरे चारों ओर मकानों से आती आवाज़ें
सड़कों पर लहराती अन-गिनत मोटर-कारें

स्कूलों से छनती ज़िंदा हँसती भिन भिन
लैम्पपोस्ट से बहती जगमग धारा

हँसते लोगों से भरपूर दूकानें सड़कें
अख़बारों में छपने वाली ऊँचे इंसानों की बातें

जो बरसों में पूरे होंगे ऐसे मंसूबों की बातें कहती हैं
हम सब ज़िंदा हैं

अर्से तक ज़िंदा रहना है
अगले बीस बरस में बस्ती

अपनी पक्की सड़कें ले कर
जंगल के कोने कोने में

बस्ती का महफ़ूज़ तसव्वुर पहुँचा देगी लेकिन जंगल
सड़कें बनने से पहले ही

जंगल का क़ानून उठाए आ जाता है
बस्ती जंगल बन जाती है

सब ज़िंदा हैं
बस्ती जंगल

अर्से तक ज़िंदा रहना है
बस्ती जंगल