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जागती आँखों का ख़्वाब | शाही शायरी
jagti aankhon ka KHwab

नज़्म

जागती आँखों का ख़्वाब

रहमान फ़ारिस

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तुम्हारी याद की ख़ुश्बू लगाई थी मैं ने
तमाम रात मिरे जिस्म-ओ-जाँ महकते रहे

सुरूर-ए-हिज्र के मौसम में भी न माँद पड़ा
हवास ज़ब्त के आलम में भी बहकते रहे

दयार-ए-ख़्वाब में कुछ ताईरान-ए-ख़ुश-आवाज़
तुम्हारे आने की उम्मीद में चहकते रहे

नवाह-ए-दिल में कई रौशनी भरे साए
वुफ़ूर-ए-शौक़ से गाते रहे लहकते रहे

मैं तुम से दूर था लेकिन तुम्हारे हाथ में था
गुज़िश्ता शब मैं किसी और काएनात में था