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जादूगर | शाही शायरी
jadugar

नज़्म

जादूगर

मुनीर नियाज़ी

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जब मेरा जी चाहे मैं जादू के खेल दिखा सकता हूँ
आँधी बन कर चल सकता हूँ बादल बन कर छा सकता हूँ

हाथ के एक इशारे से पानी में आग लगा सकता हूँ
राख के ढेर से ताज़ा रंगों वाले फूल उगा सकता हूँ

इतने ऊँचे आसमान के तारे तोड़ के ला सकता हूँ
मेरी उम्र तो बस ऐसे ही खेल दिखाते गुज़री है

अपनी साँस के शोलों से गुलज़ार खिलाते गुज़री है
झूटी सच्ची बातों के बाज़ार सजाते गुज़री है

पत्थर की दीवारों को संगीत सुनाते गुज़री है
अपने दर्द को दुनिया की नज़रों से छुपाते गुज़री है