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इज़हार | शाही शायरी
izhaar

नज़्म

इज़हार

अमीन अडीराई

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मुझे और कुछ नहीं कहना
जो कहना था वो कह डाला

जो सहना था वो सह डाला
तुम्हारे शहर में मुझ को

मिली है दर्द की दौलत
चलो जो भी यहाँ पाया

तुम्हारी चाह में पाया
क़सम ले लो कि जीवन में

कोई ख़्वाहिश न थी मेरी
कोई हाजत न थी मेरी

बस इन नैनों को देखा तो
न जाने क्या हुआ मुझ को

अचानक बे-ख़ुदी में यूँ
खड़े हो कर चौराहे पर

हुजूम-ए-ज़िंदगी में आज
मिरी जाँ कह दिया मैं ने

मुझे तुम से मोहब्बत है
मुझे तुम से ये कहना था

जो कहना था वो कह डाला
मुझे और कुछ नहीं कहना