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इय्याक-ना'बोदो व इय्याक-नस्तई'न | शाही शायरी
iyyaka-nabodo wa iyyaka-nastain

नज़्म

इय्याक-ना'बोदो व इय्याक-नस्तई'न

ज़ेहरा अलवी

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सोचती हूँ
जलते बुझते खे़मे थे

तिश्नगी की शिद्दत से
छोटे छोटे बच्चों के बंद होती आँखें थीं

अश्क़िया का नर्ग़ा था
फ़त्ह के नक़्क़ारे थे

बे-हया इशारे थे
बीबियों के बैनों में

शाम के धुँदलके में
सज्दा-गह पे सर रख कर

आबिदों की ज़ीनत ने
हम्द जब किया होगा

अर्श हिल गया होगा
सज्दा रो पड़ा होगा

सज्दा रो पड़ा होगा