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इत्तिफ़ाक़ | शाही शायरी
ittifaq

नज़्म

इत्तिफ़ाक़

अख़्तर-उल-ईमान

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दयार-ए-ग़ैर में कोई जहाँ न अपना हो
शदीद कर्ब की घड़ियाँ गुज़ार चुकने पर

कुछ इत्तिफ़ाक़ हो ऐसा कि एक शाम कहीं
किसी इक ऐसी जगह से हो यूँही मेरा गुज़र

जहाँ हुजूम-ए-गुरेज़ाँ में तुम नज़र आ जाओ
और एक एक को हैरत से देखता रह जाए!