कौन कहता है हम तुम जुदा हो गए
ज़िंदगी से अचानक ख़फ़ा हो गए
हिज्र-ए-आलम पे छाया था कुछ इस तरह
वस्ल के ख़्वाब वक़्फ़-ए-दुआ हो गए
वक़्त-ए-मीज़ान में जाने क्या बात थी
तीर जो बे-ख़ता थे ख़ता हो गए
हम कि जिस बुत को बे-जान समझा किए
वो ज़माने में क्यूँ देवता हो गए
एक दिन यूँ हुआ हुस्न-ए-सरकार में
मुद्दई' जो न थे मुद्दआ' हो गए
कुछ इरादे भी थे कुछ तमाशे भी थे
रक़्स के अक्स भी मावरा हो गए
देखते देखते हम फ़ना थे मगर
देखते देखते तुम ख़ुदा हो गए
नज़्म
इश्क़-ए-ना-तमाम
खुर्शीद अकबर