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इर्तिक़ा | शाही शायरी
irtiqa

नज़्म

इर्तिक़ा

सय्यद मुबारक शाह

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ख़ाक पर इक बूँद लपकी
बूँद जम कर लोथड़ा

इस लोथड़े में हड्डियाँ
फिर हड्डियों पर मास आया

मास जिस पर नक़्श उभरे
नक़्श को जुम्बिश मिली

और ख़ामुशी की कोख ख़ाली हो गई
चीख़ पहली गुफ़्तुगू थी

थम गई तो इस से फूटा क़हक़हा
जब थक के टूटा क़हक़हा

तब आख़िरी आवाज़ सिसकी
जुम्बिशें साकित हुईं

और क़ब्र की ख़ामोशियों में
नक़्श पिघले मास उतरा

हड्डियाँ उर्यां हुईं और मुंहदिम
लोथड़ा गल सड़ के फिर से बूँद था

और बूँद धरती खा गई
हाए मेरे इब्तिला की इंतिहा इब्तिदा तक आ गई