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इरफ़ान | शाही शायरी
irfan

नज़्म

इरफ़ान

सुलैमान अरीब

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मेरे बाप ने मरते दम भी
मुझ से बस ये बात कही थी

गर्दन भी उड़ जाए मेरी
सच बोलूँ मैं झूट न बोलूँ

उस दिन से मैं आज के दिन तक
पग पग झूट से टक्कर लेता

सच को रेज़ा रेज़ा करता
अपने दिल को इन रेज़ों से छलनी करता

ख़ून में लत-पत घूम रहा हूँ
और मिरा दामन है ख़ाली

लेकिन अब मैं थक सा गया हूँ
बरगद की छाया में बैठा कितनी देर से सोच रहा हूँ

क्यूँ न झूट से हाथ मिला लूँ
और चुपके से क़ब्र पे अपने बाप की जा कर इतना कह दूँ

तुम झूटे थे