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इंतिज़ार के दोश पर | शाही शायरी
intizar ke dosh par

नज़्म

इंतिज़ार के दोश पर

परवेज़ शहरयार

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दीवार से लटकाए
अफ़्सुर्दा खड़ा है यूकलिप्टस का दरख़्त

सोच में गुम
अब तक वो सुनहरे बाल वाली

शोख़ किरन आई नहीं
आते ही लिपट जाएगी मेरे जिस्म से बेलों की तरह

रात पिघलती रही है बूँद बूँद
दम तोड़ती हैं आख़िरी साअतें

ऐ दिल-ए-नादाँ दिल-ए-बे-ताब ठहर
बस कुछ ही पल और सब्र कर

उजाला होने भर