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इंतिबाह | शाही शायरी
intibah

नज़्म

इंतिबाह

इफ़्तिख़ार आरिफ़

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हिण्डोला झूलने वाले
ज़मीं से कट के ऊँचा झूलने की चाह रखते हैं तो फिर झूलें

मगर ये याद रक्खें
ज़मीं से कट के ऊँचा झूलने वाले फ़ज़ाओं में मुअल्लक़ ही रहेंगे

झुलाने वाले के रहम-ओ-करम पर दाएरे-दर-दाएरे गर्दिश करेंगे
और ज़मीं पर लौट कर भी बे-ज़मीनी के अलम सहते रहेंगे

हिण्डोला झूलने वाले
ज़मीं से कट के ऊँचा झूलने की चाह रखते हैं

तो फिर झूलें मगर ये याद रक्खें