उस रात लम्स-ए-माह से
इक बीज मेरे ख़ून में
बेदार हो गया
रग रग में बर्ग-ओ-शाख़
तनावर शजर बना
वीराना-ए-तपाँ से गुज़रती है जब हुआ
नोकीले नीले पत्तों से टप टप
दमकते ज़हर की बूँदें
टपकती हैं
हज़र करो
नज़्म
इंतिबाह
हामिदी काश्मीरी
नज़्म
हामिदी काश्मीरी
उस रात लम्स-ए-माह से
इक बीज मेरे ख़ून में
बेदार हो गया
रग रग में बर्ग-ओ-शाख़
तनावर शजर बना
वीराना-ए-तपाँ से गुज़रती है जब हुआ
नोकीले नीले पत्तों से टप टप
दमकते ज़हर की बूँदें
टपकती हैं
हज़र करो