वो कारवान-ए-गुल-ए-ताज़ा जिस के मुज़्दे से
दिमाग़-ए-इश्क़ मोअत्तर है और फ़ज़ा मामूर
दिलों से कितना क़रीं है नज़र से कितनी दूर
नज़्म
इंक़िलाब
ख़ुर्शीदुल इस्लाम
नज़्म
ख़ुर्शीदुल इस्लाम
वो कारवान-ए-गुल-ए-ताज़ा जिस के मुज़्दे से
दिमाग़-ए-इश्क़ मोअत्तर है और फ़ज़ा मामूर
दिलों से कितना क़रीं है नज़र से कितनी दूर