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इल्तिजा | शाही शायरी
iltija

नज़्म

इल्तिजा

हारिस ख़लीक़

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ये औरत है
इसे तुम सात पर्दों में छुपाओ

इसे तुम बाँध कर रक्खो
ये बकरी से ज़्यादा क़ीमती है

कि बकरी दूध देती है
मगर जब काट कर खा लो

तो फिर कुछ भी नहीं रहता
ये औरत है उसे कच्चा चबा लो

फिर भी ये ज़िंदा रहेगी
और तुम्हारे काम आएगी

तुम इस के ज़ेहन ओ दिल पर
और इस के जिस्म के

एक एक हिस्से पर
ख़ला में पलने वाले ख़ौफ़ का

पहरा बिठा दो
ये माँ हो या बहन

बीवी हो महबूबा हो बेटी हो
तुम्हारी ख़ादिमा हो या तवाइफ़ हो

तुम्हारे काम आएगी
मैं इक आसी

बहुत नाचीज़ बंदा हूँ
मिरी इक इल्तिजा है

कि जब उस दिन
घनी दाढ़ी का एक इक बाल गिन कर

तुम्हें हूरें मिलेंगी
तो उन हूरों के सदक़े में

ज़मीं पर बसने वाली
इस हक़ीर औरत की सब कमज़ोरियाँ

सारी ख़ताएँ माफ़ कर देना
इसे भी बख़्शवा देना