तुझ से बिछड़ कर भी ज़िंदा था
मर मर कर ये ज़हर पिया है
चुप रहना आसान नहीं था
बरसों दिल का ख़ून किया है
जो कुछ गुज़री जैसी गुज़री
तुझ को कब इल्ज़ाम दिया है
अपने हाल पे ख़ुद रोया हूँ
ख़ुद ही अपना चाक सिया है
कितनी जाँकाही से मैं ने
तुझ को दिल से महव किया है
सन्नाटे की झील में तू ने
फिर क्यूँ पत्थर फेंक दिया है
नज़्म
ईद-कार्ड
अहमद फ़राज़