मेरी आँखों में कोई चेहरा चराग़-ए-आरज़ू
वो मेरा आईना जिस से ख़ुद झलक जाऊँ कभी
ऐसा मौसम जैसे मय पी कर छलक जाऊँ कभी
या कोई है ख़्वाब
जो देखा था लेकिन फिर मुझे
याद करने पर भी याद आया न था
दिल ये कहता है वही है हू-ब-हू
जिस को देखा था कभी और सामने पाया न था
गुफ़्तुगू उस से है और है रू-ब-रू
ख़्वाब हो जाए न लेकिन गुफ़्तुगू
मेरी आँखों में कोई चेहरा चराग़-ए-आरज़ू
नज़्म
आइडियल
उबैदुल्लाह अलीम