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हुवल-इश्क़ | शाही शायरी
huwal-ishq

नज़्म

हुवल-इश्क़

शहराम सर्मदी

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वो 'सारा'-अहमदी की दफ़-नवाज़ी
और वो इश्क़-ए-मौलवी

फिर यूँ हुआ
वो तक-तक-ए-दफ़

महव होती जा रही थीं
हक़ हक़-ए-हक़ में

ये फ़ैज़ान-ए-निगाह-ए-'शम्स' था या
जज़्ब-ए-क़ल्ब-ए-मौलवी था

ब'अद-अज़ाँ
जो कुछ भी था वो सरमदी था