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हुस्न-ए-बीमार | शाही शायरी
husn-e-bimar

नज़्म

हुस्न-ए-बीमार

जोश मलीहाबादी

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क्या ग़ज़ब है हुस्न के बीमार होने की सदा
जैसे कच्ची नींद से बेदार होने की अदा

इंकिसार-ए-हुस्न पलकों के झपकने में निहाँ
नीम-वा बीमार आँखों से मुरव्वत सी अयाँ

जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ में ग़लताँ साज़-ए-ग़म का ज़ेर ओ बम
ख़ामुशी में पर-फ़िशाँ ईफ़ा-ए-पैमाँ की क़सम

एहतिराम-ए-इश्क़ की रौ दिल-नशीं आवाज़ में
एक फीके-पन का सन्नाटा दयार-ए-नाज़ में

अल-अमाँ आँखों की नीम-अफ़्सुर्दा सी अफ़्सूँ-गरी
एक धुँदला सा तबस्सुम इक थकी सी दिलबरी

चूड़ियाँ ढीली दिलाई पर शिकन माथे पे हात
लब पे ख़ुश्की रुख़ पे सूँधा-पन नज़र में इल्तिफ़ात

हल्की हल्की झलकियाँ रुख़्सार पर यूँ नूर की
जैसे गुल पर सुब्ह-ए-काज़िब की सुहानी चाँदनी

ले रहा है करवटें आरिज़ में यूँ रंग-ए-शबाब
जिस तरह मौज-ए-ख़िरामाँ पर ज़िया-ए-माहताब

हुस्न यूँ खोया हुआ सा बज़्म-ए-महसूसात में
जैसे दोनों वक़्त मिलते हूँ भरी बरसात में

यूँ है इक रौशन नमी सी चश्म-ए-सेहर-अंदाज़ में
सुब्ह को शबनम हो जैसे मअरिज़-ए-परवाज़ में

जैसे कोहरे में कोई ताबिंदा मंज़र दूर का
जैसे पिछली रात के सीने पे डोरा नूर का

ऐसे इज़्मेहलाल पर दुनिया की बरनाई निसार
ऐसी बीमारी पर एजाज़-ए-मसीहाई निसार