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हिसाब | शाही शायरी
hisab

नज़्म

हिसाब

ज़ीशान साहिल

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सब से पहले
हम मोहब्बत को फ़र्ज़ कर लेते हैं

फिर अपने ख़्वाबों से
उसे ज़र्ब देते हैं

जवाब में हमारी ज़िंदगी
हमें नहीं मिलती

हम एक बार फिर
मोहब्बत को फ़र्ज़ कर लेते हैं

और इस दफ़अ' मोहब्बत को
ख़ौफ़ से तक़्सीम कर देते हैं

जवाब में कुछ हासिल नहीं होता
हम आख़िरी बार मोहब्बत को फ़र्ज़ करते हैं

और इस में से अपने ख़्वाब
और ख़ौफ़ घटा लेते हैं

हमारी ज़िंदगी हमें मिल जाती है
मोहब्बत के हिसाब में

एक से ज़ियादा चीज़ें
फ़र्ज़ नहीं की जा सकतीं

और फ़र्ज़ की हुई चीज़ में
हम अपने ख़्वाब

या कुछ और जम्अ' नहीं कर सकते