तो क्या
ज़िंदगी ने तुम्हें वो सभी कुछ दिया
जिस की तुम आरज़ू-मंद थीं
कि मेरी तरह
तमन्ना के कश्कोल ख़ाली रहे
और बख़्शिश का लम्हा
तुम्हें और नादार कर के गुज़र भी गया
मुझे ये बताया गया है
तुम्हारी उमीदों की शादाब फ़सलों पे
जब संग-बारी हुई
तो टूटे हुए ख़्वाब की किर्चियाँ
अपने एहसास की सारी वीरानियों में छुपा कर भी
तुम ने ये ज़ाहिर किया
जैसे तुम्हारे क़दम ज़मीं पर नहीं पड़ रहे हों
जैसे तुम आसमानों में पर्वाज़ करती रही हो
गरचे आती जाती हुई एक इक साँस में
कोई आवाज़ तुम से ये कहती रही
''हिना-रंग हाथों में झूटे नगीने
तुम्हारी कड़ी साधना का सिला तो नहीं
जिस के क़दमों में तुम
अपने सज्दों के मोती लुटाती हो
वो
तुम्हारी परस्तिश के लाएक़ ख़ुदा तो नहीं''
तो अब तुम पे ज़ाहिर हुआ!
ख़्वाब ताबीर के रंग में जगमगाते नहीं
सराबों की सूरत में आदर्श
जो हाथ आते नहीं
मैं तो ये चाहता था
कि हर मोड़ पर
तुम को ला-हासिली के परेशान-कुन तजरबे
से बचा कर रखूँ
मगर मेरी कमज़ोर चाहत
तुम्हें इब्तिदा-ए-सफ़र में
शिकस्तों से दो-चार होते हुए
देखती रह गई
और कुछ कर न पाई
अब?
किसी सम्त भी जाओ
काँटों भरी राह से ही गुज़रना पड़ेगा
अपने आदर्श की रिफ़अतों से
उतरने की ख़ातिर
रूह पर जब्र करना पड़ेगा
और अगर तुम ने
झूटी मसर्रत का रंगीं लबादा पहन भी लिया
तो अपने पिंदार का सामना किस तरह कर सकोगी?
नज़्म
हिना-रंग हाथों में
अरमान नज्मी