तू पास था जी को चैन कुछ था
तेरा जाना कि आफ़त आई
नज़रों से छुपा जो तेरा चेहरा
मेरे सर पर क़यामत आई
बाक़ी थोड़ा सा दिन था लेकिन
मेरी आँखों में था अँधेरा
क्यूँकर हो सब्र मुझ से मुमकिन
दिल को हर-दम है ध्यान तेरा
ऐ ज़ुल्म के और सितम के बानी
ऐ शोख़ जफ़ा-शिआ'र अय्यार
मुझ को दूभर है ज़िंदगानी
मेरी आँखों में है जहाँ तार
ऐ बर्क़-मिसाल ऐ तरहदार
ऐ माह-जबीं ग़ज़ाल-सीरत
मुझ पर तार-ए-नफ़स है इक बार
मुझ से कोसों परे है राहत
घर-भर सोता है एक बेताब
आहें भर कर तड़प रहा है
भूले भी आँख को नहीं ख़्वाब
ज़ुल्मत-ए-शब की अजब बला है
हरगिज़ हरगिज़ मुझे मयस्सर
आई कोई घड़ी न राहत
कैसा कैसा रहा हूँ मुज़्तर
कितनी कितनी उठाई ज़हमत
दिल को है सख़्त बे-क़रारी
जीने के पड़ गए हैं लाले
दिल की हालत न ये मिटेगी
जब तक तू ही न फिर सँभाले
मुझ को तन्हाई गो सताए
तुझ को ऐश-ओ-तरब हो मैमूँ
मुझ पर आफ़त हज़ार आए
तुझ से ख़ुश-तालई' हो मकरूँ
तुझ से छुटना है सख़्त मुश्किल
जब तक है हाफ़िज़े में क़ुदरत
तेरा तेरा रहेगा ये दिल
जब तक न मिलाए तुझ से क़िस्मत
नज़्म
हिज्र
अज़ीमुद्दीन अहमद