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हवस | शाही शायरी
hawas

नज़्म

हवस

नील अहमद

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ब-ज़ाहिर ख़ूबसूरत हैं
तकल्लुम का तरीक़ा भी बहुत उम्दा सा उन का

बदन पर डाल कर पोशाक महँगे दाम वाली वो
समझते हैं निगाहों की हवस भी ढाँप ली हम ने

मगर वो जानते कब हैं
हवस का जिस्म नंगा है