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हवा की पुश्त पर | शाही शायरी
hawa ki pusht par

नज़्म

हवा की पुश्त पर

हमीद अलमास

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हुआ की पुश्त पे कितने नुक़ूश कंदा हैं
कहीं नफ़स की लकीरें

कहीं बिसात-ए-हुनर
हयात ओ मौत के परतव

अलम की परछाईं
लहू के रंग में डूबा हुआ फ़लक का धुआँ

कभी ज़मीन का दामन ग़ुबार-आलूदा
कभी गरजता हुआ सैल-ए-बे-कराँ लर्ज़ां

मिसाल-ए-हर्फ़-ए-तमन्ना ये नक़्श मिट न सके
हवा की पुश्त पे कब से नुक़ूश कंदा हैं