EN اردو
हथेली | शाही शायरी
hatheli

नज़्म

हथेली

वज़ीर आग़ा

;

एक पत्ता गिरा
तू ने आँसू भरी तुंद गाली से जिस का स्वागत किया

एक पत्ता गिरा
ख़ुश्क होंटों पर अपनी ज़बाँ फेर कर

तू ने इक बार फिर अपनी बंजर हथेली को आगे किया
एक पत्ता गिरा

लाल सूरज
जो दिन फिर पके सेब के रूप में

तेरे सर पर लटकती हुई
बाँझ शाख़ों के झूले से चिपका रहा

अब कहाँ है
वो रंगों का तूफ़ाँ

तुझे जिस की ख़ातिर हथेली की बंजर ज़मीं को सजाना पड़ा
अब कहाँ है

लरज़ता हुआ लाल सूरज तो काले समुंदर की झोली में गिर भी चुका
लो वो पत्ता गिरा