क़लम भी तड़प उठा
क़िर्तास पे
लिखने से पहले
लहूलुहान हर्फ़
हो गए बर्फ़
उफ़ सर्द एहसास
उम्मीदों को
मार न डाले कहीं
घायल परों के साथ
ये हसरतें
उड़ने से
बाज़ नहीं आतीं
और आख़िर-कार
लड़खड़ाती पर्वाज़
जबीन-ए-फ़लक
चूम लेती है
नज़्म
हसरतें
ख़दीजा ख़ान