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हर नक़्श अधूरा है | शाही शायरी
har naqsh adhura hai

नज़्म

हर नक़्श अधूरा है

शकील जाज़िब

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ढलते हुए सूरज की
अब आख़िरी हिचकी है

पतझड़ की उदासी में
बे-बर्ग दरख़्तों की

हर उजड़ी हुई टहनी
सूरज के जनाज़े को

काँधों पे उठाए है
इस वक़्त मिरा दिल भी

बिल्कुल है फ़लक जैसा
ठहरे हुए इक पल में

ढलता हुआ सूरज है
इस वक़्त मोहब्बत का

हर नक़्श अधूरा है