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हक़ीक़त | शाही शायरी
haqiqat

नज़्म

हक़ीक़त

मुनीर नियाज़ी

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न तू हक़ीक़त है और न मैं
और न तेरी मेरी वफ़ा के क़िस्से

न बरखा-रुत की सियाह रातों में
रास्ता भूल कर भटकती हुई सजल नारियों के झुरमुट

न उजड़े नगरों में ख़ाक उड़ाते
फ़सुर्दा-दिल प्रेमियों के नौहे

अगर हक़ीक़त है कुछ तो ये इक हवा का झोंका
जो इब्तिदा से सफ़र में है

और जो इंतिहा तक सफ़र करेगा