न तू हक़ीक़त है और न मैं
और न तेरी मेरी वफ़ा के क़िस्से
न बरखा-रुत की सियाह रातों में
रास्ता भूल कर भटकती हुई सजल नारियों के झुरमुट
न उजड़े नगरों में ख़ाक उड़ाते
फ़सुर्दा-दिल प्रेमियों के नौहे
अगर हक़ीक़त है कुछ तो ये इक हवा का झोंका
जो इब्तिदा से सफ़र में है
और जो इंतिहा तक सफ़र करेगा
नज़्म
हक़ीक़त
मुनीर नियाज़ी