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हम-ज़ाद | शाही शायरी
ham-zad

नज़्म

हम-ज़ाद

साक़ी फ़ारुक़ी

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शैख़-ज़मन-शादानी
आओ

ख़्वाब देखते हैं
याद नगर में साए फिरते हैं

तन्हाई सिसकारी भरती है
अपनी दुनिया तारीकी में डूब चली

बाहर चल कर महताब देखते हैं
शैख़-ज़मन-शादानी

आओ
ख़्वाब देखते हैं

हम से पहले कौन कौन से लोग हुए
जो साहिल पर खड़े रहे

जिन की नज़रें पानी से टकरा टकरा कर
टूट टूट कर बिखर गई हैं

बिखर गई हैं और पानी का सब्ज़ा हैं
इस सब्ज़े के पीछे क्या है

आज अक़ब में
छुपे हुए गिर्दाब देखते हैं

शैख़ ज़मन शादानी
आओ

ख़्वाब देखते हैं