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हम न सही | शाही शायरी
hum na sahi

नज़्म

हम न सही

सुबोध लाल साक़ी

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हम न सही तुम न सही
मगर अब भी कोई लड़का

किसी लड़की के घर के सामने
चिलचिलाती धूप में खड़ा होगा

किसी बहाने
तुम न सही मैं न सही

मगर अब भी कोई लड़की
घर की खिड़की तक आने में

झिझकती होगी
कि इस पागल लड़के की

हौसला-अफ़ज़ाई न हो जाए
मैं न सही तुम न सही

मगर वो लड़का अब भी
मिस करता होगा

वो चिलचिलाती धूप
और वो लड़की अब भी

मिस करती होगी
वो बेबाक हौसला