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हम कि हीरो नहीं | शाही शायरी
hum ki hero nahin

नज़्म

हम कि हीरो नहीं

जावेद अनवर

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हम ख़िज़ाँ की ग़ुदूद से चल कर
ख़ुद दिसम्बर की कोख तक आए

हम को फ़ुटपाथ पर हयात मिली
हम पतंगों पे लेट कर रोए

सूरजों ने हमारे होंटों पर
अपने होंटों का शहद टपकाया

और हमारी शिकम तसल्ली को
जून की छातियों में दूध आया

बर्फ़ बिस्तर बनी हमारे लिए
और दोज़ख़ के सुर्ख़ रेशम से

हम ने अपने लिए लिहाफ़ बुने
ज़र्द शिरयान को धुएँ से भरा

फेफड़ों पर सियाह राख मली
नागा-साकी में फूल काश्त किए

नज़्म बेरूत में मुकम्मल की
लोरका को कलाई पर बाँधा

हो-ची-मिन्ह को नियाम में रखा
साढ़े लेनिन बजे स्कूल गए

सुब्ह-ए-ईसा को शाम में रक्खा
अरमुग़ान-ए-हिजाज़ में सोए

होलीवुड की अज़ान पर जागे
डाइरी में सुधार था लिखा

दर्द को फ़लसफ़े की लोरी दी
ज़ख़्म पर शाइ'री का फाहा रक्खा

तन मशीनों की थाप पर थिरके
दिल किताबों की ताल पर नाचा

हम ने फ़िरऔन का क़सीदा लिखा
हम ने कूफ़े में मरसिए बेचे

हम ने बोसों का कारोबार किया
हम ने आँखों के आइने बेचे

ज़िंदगी की लगन नहीं हम को
ज़िंदगी की हमें थकन भी नहीं

हम कि हीरो नहीं विलेन भी नहीं