रौशनी क़त्ल हुई
तो जिस्म ख़ाली हो गए
ज़िंदगी का ग़ुबार ही हमारा हासिल है
हम ने पराए-घरों की राज-गीरी की
और अपनी छत के ख़्वाब देखे
हमें कब मालूम था
सोई दुकानों की सीढ़ियाँ हमारा तकिया हैं
हमारे नाम इज़ाफ़ी मिट्टी पर लिखे गए
और हम फ़क़त लोगों को दोहराते रहे
हम बे-एहतियात लम्हों का क़िसास नहीं थे
हम हलाल के थे
मगर बेघर पैदा हुए
नज़्म
हम इज़ाफ़ी मिट्टी से बने
ज़ाहिद इमरोज़