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हम-अस्र | शाही शायरी
ham-asr

नज़्म

हम-अस्र

साहिर लुधियानवी

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तू भी कुछ परेशाँ है
तू भी सोचती होगी

तेरे नाम की शोहरत तेरे काम क्या आई
मैं भी कुछ पशेमाँ हूँ

मैं भी ग़ौर करता हूँ
मेरे काम की अज़्मत मेरे काम क्या आई

तेरे ख़्वाब भी सूने
मेरे ख़्वाब भी सूने

तेरी मेरी शोहरत से
तेरे मेरे ग़म दूने

तू भी इक सुलगता बन
मैं भी इक सुलगता बन

तेरी क़ब्र तेरा फ़न
मेरी क़ब्र मेरा फ़न

अब तुझे मैं क्या दूँगा
अब मुझे तू क्या देगा

तेरी मेरी ग़फ़लत को
ज़िंदगी सज़ा देगी

तू भी कुछ परेशाँ है
तू भी सोचती होगी

तेरे नाम की शोहरत तेरे काम क्या आई
मैं भी कुछ पशेमाँ हूँ

मैं भी ग़ौर करता हूँ
मेरे काम की अज़्मत मेरे काम क्या आई